10-04-84  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

प्रभु प्यार - ब्राह्मण जीवन का आधार

प्यार के सागर शिवबाबा, प्रभु प्यार की पालना में रहने वाले श्रेष्ठ आत्माओं प्रति बोले

‘‘आप सभी स्नेही सहयोगी, सहजयोगी आत्माओं को देख रहे हैं। योगी आत्मायें तो सभी हैं। ऐसे ही कहेंगे कि यह योगियों की सभा है। सभी योगी तू आत्मायें अर्थात् प्रभु प्रिय आत्मायें बैठी हैं। जो प्रभु को प्रिय लगती हैं वह विश्व की प्रिय बनती ही हैं। सभी को यह रूहानी नशा, रूहानी रूहाब, रूहानी फखर सदा रहता है कि हम परमात्म-प्यारे, भगवान के प्यारे, जगत के प्यारे बन गये। सिर्फ एक आधी घड़ी की नजर वा दृष्टि पड़ जाए, भक्त लोग इसके प्यासे रहते हैं। और इसी को महानता समझते हैं। लेकिन आप ईश्वरीय प्यार के पात्र बन गये। यह कितना महान भाग्य है। आज हर आत्मा बचपन से मृत्यु तक क्या चाहती है? बेसमझ बच्चे भी जीवन में प्यार चाहता है। पैसा पीछे चाहता लेकिन पहले प्यार चाहता। प्यार नहीं तो जीवन, निराशा को जीवन अनुभव करते, बेरस अनुभव करते हैं। लेकिन आप सर्व आत्माओं को परमात्म प्यार मिला, परमात्मा के प्यारे बने। इससे बड़ी वस्तु और कुछ है? प्यार है तो जहान है, जान है। प्यार नहीं तो बेजान, बेजहान हैं। प्यार मिला अर्थात् जहान मिला। ऐसा प्यार, श्रेष्ठ भाग्य अनुभव करते हो? दुनिया इसकी प्यासी है। एक बूँद की प्यासी है और आप बच्चों का यह प्रभु प्यार प्रापर्टी है। इसी प्रभु प्यार से पलते हो। अर्थात् ब्राह्मण जीवन में आगे बढ़ते हो। ऐसा अनुभव करते हो? प्यार के सागर में लवलीन रहते हो? वा सिर्फ सुनते वा जानते हो? अर्थात् सागर के किनारे पर खड़े-खड़े सिर्फ सोचते और देखते रहते हो! सिर्फ सुनना और जानना यह है किनारे पर खड़ा होना। मानना और समा जाना यह है प्रेम के सागर में लवलीन होना। प्रभु के प्यारे बनकर भी सागर में समा जाना, लीन हो जाना यह अनुभव नहीं किया तो प्रभु प्यार के पात्र बन करके पाने वाले नहीं लेकिन प्यासे रह गये। पास आते भी प्यासे रह जाना इसको क्या कहेंगे? सोचो किसने अपना बनाया! किसके प्यारे बने! किसकी पालना में पल रहे हैं? तो क्या होगा? सदा स्नेह में समाये हुए होने कारण समस्यायें वा किसी भी प्रकार की हलचल का प्रभाव पड़ नहीं सकता। सदा विघ्न-विनाशक, समाधान स्वरूप, मायाजीत अनुभव करेंगें।

कई बच्चे कहते हैं- ज्ञान की गुह्य बातें याद नहीं रहतीं। लेकिन एक बात यह याद रहती है कि मैं परमात्मा का प्यारा हूँ, परमात्म-प्यार का अधिकारी हुँ। इसी एक स्मृति से भी सदा समर्थ बन जायेंगे। यह तो सहज है ना। यह भी भूल जाता फिर तो भूल भुलैया में फँस गये। सिर्फ यह एक बात सर्व प्राप्ति के अधिकारी बनाने वाली है। तो सदैव यही याद रखो, अनुभव करो कि मैं प्रभु का प्यारा जग का प्यारा हूँ। समझा! यह तो सहज है ना। अच्छा - सुना तो बहुत है, अब समाना है। समाना ही समान बनना है। समझा!

सभी प्रभु प्यार के पात्र बच्चों को, सभी स्नेह में समाए हुए श्रेष्ठ आत्माओं को, सभी प्यार की पालना के अधिकारी बच्चों को, रूहानी फखर में रहने वाली, रूहानी नशे में रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

1. सभी सहज योगी आत्मायें हो ना! सर्व सम्बन्ध से याद सहज योगी बना देती है। जहाँ सम्बन्ध है वहाँ सहज है। मैं सहजयोगी आत्मा हूँ, यह स्मृति सर्व समस्याओं को सहज ही समाप्त करा देती है। क्योंकि सहजयोगी अर्थात् सदा बाप का साथ है। जहाँ सर्व शक्तिवान बाप साथ है, सर्व शक्तियाँ साथ हैं तो समस्या समाधान के रूप में बदल जायेगी। कोई भी समस्या बाप जाने, समस्या जाने। ऐसे सम्बन्ध के अधिकार से समस्या समाप्त हो जायेगी। मैं क्या करूँ! नहीं। बाप जाने समस्या जाने। मैं न्यारा और बाप का प्यारा हूँ। तो सब बोझ बाप का हो जायेगा और आप हल्के जो जायेंगे। जब स्वयं हल्के बन जाते तो सब बातें भी हल्की हो जाती हैं। जरा भी सोच चलता तो भारी हो जाते और बातें भी भारी हो जातीं। इसलिए मैं हल्का हूँ, न्यारा हूँ तो सब बातें भी हल्की हैं। यही विधि हैं, इसी विधि से सिद्धि प्राप्त होगी। पिछला हिसाब-किताब चुक्तू होते हुए भी बोझ अनुभव नहीं होगा। ऐसे साक्षी होकर देखेंगे तो जैसे पिछला खत्म हो रहा है और वर्तमान की शक्ति से साक्षी हो देख रहे हैं। जमा भी हो रहा है और चुक्तू भी हो रहा है। जमा की शक्ति से चुक्तू का बोझ नहीं। तो सदा वर्तमान को याद रखो। जब एक तरफ भारी होता तो दूसरा स्वत: हल्का हो जाता। तो वर्तमान भारी है तो पिछला हल्का हो जायेगा ना। वर्तमान प्राप्ति का स्वरूप सदा स्मृति में रखो तो सब हल्का हो जायेगा। तो पिछले हिसाब को हल्का करने का साधन है - वर्तमान को शक्तिशाली बनाओ। वर्तमान है ही शक्तिशाली। वर्तमान की प्राप्ति को सामने रखेंगे तो सब सहज हो जायेगा। पिछला सूली को काँटा हो जायेगा। क्या है, क्यों है! नहीं। पिछला है। पिछले को क्या देखना। जहाँ लगन है वहाँ विघ्न भारी नहीं लगता। खेल लगता है। वर्तमान की खुशी की दुआ से और दवा से सब हिसाब-किताब चुक्तू करो।

टीचर्स से

सदा हर कदम में सफलता अनुभव करने वाली हो ना! अनुभवी आत्मायें हो ना! अनुभव ही सबसे बड़ी अथार्टी है। अनुभव की अथार्टी वाले हर कदम में हर कार्य में सफल हैं ही। सेवा के निमित्त बनने का चांस मिलना भी एक विशेषता की निशानी है। जो चांस मिलता है उसी को आगे बढ़ाते रहो। सदा निमित्त बन आगे बढ़ने और बढ़ाने वाली हैं। यह ‘निमित्त-भाव’ ही सफलता को प्राप्त कराता है। निमित्त और निर्मान की विशेषता को सदा साथ रखो। यही विशेषता सदा विशेष बनायेगी। निमित्त बनने का पार्ट स्वयं को भी लिफ्ट देता है। औरों के निमित्त बनना अर्थात् स्वयं सम्पन्न बनना। दृढ़ता से सफलता को प्राप्त करते चलो। सफलता ही है, इसी दृढ़ता से सफलता स्व्यं आगे जायेगी।

जन्मते ही सेवाधारी बनने का गोल्डन चांस मिला है तो बड़े ते बड़ी चांसलर बन गई ना। बचपन से ही सेवाधारी की तकदीर लेकर आई हो। तकदीर जगाकर आई हो। कितनी आत्माओं की श्रेष्ठ तकदीर बनाने के कर्त्तव्य के निमित्त बन गई! तो सदा याद रहे - वाह मेरे श्रेष्ठ तकदीर की श्रेष्ठ लकीर! बाप मिला, सेवा मिली, सेवास्थान मिला और सेवा के साथ-साथ सर्व आत्माओं का श्रेष्ठ परिवार मिला। क्या नहीं मिला! राज्य भाग्य सब मिल गया। यह खुशी सदा रहे। विधि द्वारा सदा वृद्धि को पाते रहो। निमित्त भाव की विधि से सेवा में वृद्धि होती रहेगी।

कुमारों से

कुमार जीवन में बच जाना यह सबसे बड़ा भाग्य है। कितने झंझटों से बच गये! कुमार अर्थात् बन्धमुक्त आत्मायें। कुमार जीवन बन्धनमुक्त जीवन है। लेकिन कुमार जीवन में भी फ्री रहना माना बोझ उठाना। कुमारों के प्रति बापदादा का डायरेक्शन है - लौकिक में रहते अलौकिक सेवा करनी है। लौकिक सेवा सम्पर्क बनाने का साधन है। इसमें बिजी रहो तो अलौकिक सेवा कर सकेंगे। लौकिक में रहते अलौकिक सेवा करो। तो बुद्धि भारी नहीं रहेगी। सबको अपना अनुभव सुनाकर सेवा करो। लौकिक सेवा, सेवा का साधन समझकर करो तो लौकिक साधन बहुत सेवा का चांस दिलायेगा। लक्ष्य ईश्वरीय सेवा का है लेकिन यह साधन है। ऐसे समझकर करो। कुमार अर्थात् हिम्मत वाले। जो चाहो वह कर सकते हैं। इसलिए बापदादा सदा साधनों द्वारा सिद्धि को प्राप्त करने की राय देते हैं। कुमार अर्थात् निरन्तर योगी। क्योंकि कुमारों का संसार ही एक बाप है। जब बाप ही संसार है तो संसार के सिवाए बुद्धि और कहाँ जायेगी। जब एक ही हो गया तो एक की ही याद रहेगी ना! और एक को याद करना बहुत सहज है। अनेकों से तो छूट गये। एक में ही सब समाये हुए हैं! सदा हर कर्म से सेवा करनी है, दृष्टि से, मुख से - सेवा ही सेवा। जिससे प्यार होता है उसे प्रत्यक्ष करने का उमंग होता है। हर कदम में बाप और सेवा सदा साथ रहे। अच्छा-